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Sunday, 27 January 2019

वास्तुशास्त्र में ईशान कोण

वास्तुशास्त्र में ईशान कोण का काफी महत्व है। इसे भगवान शंकर का दिशा जोन भी कहा जाता है। इस दिशा जोन को मानसिक स्पष्टता, निर्णय लेने की क्षमता और पूजा स्थल के नाम से भी हम जानते हैं। मस्तिष्क कैसे काम करता है और कैसे उसकी निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है, ये सब इसी दिशा में पर निर्धारित होता है। इस दिशा जोन का रंग नीला/काला होता है तथा यहां का तत्व मुख्यता जल है। हालांकि यहां पर अग्नि तत्व भी पूर्व की तरफ के हिस्से में प्रबलता से पाया जाता है।

इस देवता का है प्रमुख स्थान
वास्तु देवता यहां पर प्रमुखता से निवास करते हैं। राक्षसों की माता दिति का यहाँ पर मुख्य स्थान है। दिति ऋषि कश्यप की पत्नी थी। उत्तर दिशा के आठवें द्वार को दिति ही निर्धारित करती हैं। (हर दिशा में मुख्यता ८ द्वार होते हैं) बायीं आँख की सेहत और  दूरदृष्टि  यहीं  से निर्धारित होती है  तथा मन की द्विविद्ता (Duality) या द्वैतवाद यहीं पर दूर होते हैं। अगर घर में द्वार यहाँ पर हो तो महिलाओं का घर में वर्चस्व ज़्यादा होता है। दूसरे वास्तु देवता यहां पर शिखी हैं जिनका तत्त्व अग्नि है।  इसी को भगवा  शिव की तीसरी आँख भी कहा जाता है। यहां घर या भवन का पूर्व दिशा की और पहला द्वार भी होता है। मन के सब विचार, नए भाव तथा समझ यहीं पर पैदा होते हैं। यहां द्वार होने से घर में दुर्घटना अथवा आग लगने का ख़तरा रहता है।   

इन बातों का रखें विशेष ख्याल
इस दिशा जोन में कभी भी शौच, सेप्टिक टैंक्स, पानी की टंकी, सीढ़ियां, स्टोर, रसोई आदि का निर्माण नहीं करना चाहिए क्यूंकि इस से मानसिक परेशानी बढ़ती है तथा मस्तिष्क से सम्बंधित रोग होते हैं।  इनसे आपकी निर्णय लेने की क्षमता में रुकावट आती है तथा नकारात्मक सोच का निर्माण होता है। गृहणी के लिए तो ये ख़ास तौर से बहुत कष्टप्रद होता है। यहां की दीवारों पर लाल, गहरा लाल, गुलाबी तथा बैंगनी रंगो का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।  

नहीं होनी चाहिये ये चीजें
उत्तर पूर्व दिशा चुंबकीय और सौर ऊर्जा का मिलान स्थल है इसलिए ये भगवान शंकर का भी स्थान है। इसलिए इस स्थान पर ये सरंचनाएं नहीं होने चाहिए —
•    स्टोर
•    सीढ़ियां
•    छत पर पानी की टाकी
•    शौचालय
•    रसोई
•    सीवर लाइन्स और नालियां
•    बिजली के भरी यंत्र, उपकरण और बिजली के बोर्ड्स
•    भारी  मशीनरी
•    भारी निर्माण

इन उपायों से मिलेगा शुभ फल 
1. बच्चे इस दिशा की और देख कर पढ़ाई करें, इस से उन्हें लाभ होगा।
2.  नव वर-वधू को इस स्थान पर बने कमरे में कभी भी नहीं सोना चाहिए क्यों कि इस से वैवाहिक जीवन में बाधा पड़ती है तथा तलाक़ होने के खतरे बढ़ जाते हैं।  
3. गृहणियों को यहाँ पर गैस के नीचे पीले रंग का संगमरमर का पत्थर रखना चाहिए।  
4. इस स्थान पर हमेशा छोटा सा मंदिर बनाएं।  
5. इस दिशा जोन में कभी भी सीढ़ी, स्टोर या शौचालय न बनायें। इस से मस्तिष्क से सम्बंधित बीमारी होने की सम्भावना हो सकती है जैसे कि पैरालिसिस।
6.  इस दिशा जोन  में लाल, गुलाबी  और बैंगनी रंगो का दीवारों पर इस्तेमाल न करें।  इस रंग की वस्तुएं भी यहाँ से हटा कर दक्षिण पूर्व दिशा जोन में रख दें।  यहाँ पर ज़्यादा करके बिजली के उपकरण  भी न रखें।  इस दिशा जोन में हलके क्रीम कलर या नीले रंग का इस्तेमाल करें।  

Sunday, 2 December 2018

धनवान बनने का योग

🏵️ ।।धनवान बनने का योग ।।🏵️

यदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।

२ मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।

३ जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।

४ शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।

५ जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।

६ दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।

७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।

८ सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।

९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।

११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।

१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।

१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बनाता है

१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।

१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।

१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।

१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।

१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।

२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।

*विकास नागपाल*
_ज्योतिष एवं वास्तु सलाहकार_
🎄 *सुकृति एस्ट्रो वास्तु रिसर्च सेंटर*🎄
_समस्या आपकी समाधान हमारे_
करनाल ।
9215588984

Wednesday, 27 July 2016

--- मंत्र-शक्ति ---

--- मंत्र-शक्ति  ---

एक बार लंका नरेश रावण,राजा हरिश्चंद्र की तपस्चर्या से प्रभावित हो कर उनके दर्शन करने आया | राज महल के द्वार पर पहुँच कर रावण ने द्वारपाल को अपने आने का प्रयोजन बताया और कहा कि - " मैंने राजा हरिश्चंद्र कि तपश्या और मंत्र साधना के विषय में काफी प्रशंशा सुनी है| मैं उनसे कुछ सीखने कि कामना लेकर आया हूँ " | 

द्वारपाल ने रावण को उत्तर दिया कि - "  हे भद्र पुरुष आप निस्चय ही हमारे राजा से मिल सकेंगे,किन्तु अभी आपको प्रतीक्षा करनी होगी क्योंकि राजन अभी अपने साधना कक्ष में साधना,उपाशना आदि कर रहे हैं " | कुछ समय के बाद द्वारपाल रावण को ले कर राजा हरिश्चंद्र के पास गया | रावण ने झुक कर प्रणाम किया और राजा से अपने मन कि बात कही कि वह उनसे साधनात्मक ज्ञान - लाभ हेतु आया है |

वार्तालाप चल ही रहा था कि एकाएक राजा हरिस्चन्द्र का हाथ तेजी से एक ओर घूमा | पास रखे एक पात्र से उन्होंने अक्षत के कुछ दाने उठाये और होठो से कुछ अस्पस्ट सा बुदबुदाते हुए बड़ी तीव्रता से एक दिशा में फेेंक दिया  | रावण एकदम हतप्रभ सा रह गया ,उसने पुछा - " राजन यह आपको क्या हो गया था " |

राजा हरिस्चन्द्र बोले -- " यहाँ से १०० मील दूर पूर्व दिशा में एक हिंसक व्याघ्र ने एक गाय पर हमला कर दिया था और अब वह गाय सुरक्षित है " | रावण को बड़ा अचरज हुआ और वह बिना समय गवाएं इस बात को स्वयं जा कर देख लेना चाहता था | चलते - चलते जब रावण उस स्थल तक पहुंचा तो देखा कि रक्त-रंजित एक व्याघ्र भूमि पर पड़ा है,पास ही में वो अक्षत के दाने भी पड़े थे | व्याघ्र को वे अक्षत के दाने तीर कि भांति लगे थे जिससे वह घायल हुआ था | राजा हरिस्चन्द्र कि मन्त्र - शक्ति का प्रमाण रावण के सामने था |

शेर के बच्चे को शिकार करना नहीं सिखाया जाता,मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाया जाता,गुरु बीज-मन्त्र के उपाशकों,इसे समझो और बूझो |आज भी मंत्रो में वही शक्ति है,वही तेजस्विता है,जो राजा हरिश्चंद्र के समय थी | आवश्यकता है तो,मनःस्थिति को एकाग्र करने कि,पूर्ण दृढ़ता के साथ मन्त्रों का ह्रदय से उच्चारण करने क़ी |

----  जय श्री राम ----

'पैर उतने ही पसारो जितनी चादर की लम्बाई हो'।

एक कछुआ यह सोचकर बड़ा दुखी रहता था कि पक्षीगण बड़ी आसानी से आकाश में उड़ा करते हैं  , परन्तु मैं नही उड़ पाता । वह मन ही मन यह सोचविचार कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाश में पहुँचा दे तो फिर मैं भी पक्षियो की तरह ही उड़ते हुये विचरण किया करूँ ।
एक दिन उसने एक गरूड़ पक्षी के पास जाकर कहा - भाई ! यदि तुम दया करके मुझे एक बार आकाश में पहुँचा दो तो मैं समुद्रतल से सारे रत्न निकालकर तुम्हे दे दुँगा । मुझे आकाश मे उड़ते हुऐ विचरण करने की बड़ी ईच्छा हो रही है ।
कछुए की प्रार्थना तथा आकांक्षा सुनकर गरुड़ बोला - ' सुनो भाई ! तुम जो चाहते हो उसका पूरा हो पाना असम्भव है क्योंकि अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा कभी पूरी नही हो पाती ।'
परन्तु कछुआ अपनी जिद पे अड़ा रहा , और बोला ! बस तुम मुझे एक बार उपर पहुँचा दो, मैं उड़ सकता हुँ, और उड़ुँगा  और यदि नही उड़ सका तो गिरकर मर जाऊंगा, इसके लिये तुम्हे चिंता करने की जरुरत नही ।
तब गरुड़ ने थोड़ा सा हँसकर कछुए को उठा लिया और काफी उँचाई पर पहुँचा दिय । उसने कहा - 'अब तुम उड़ना आरम्भ करो ' इतना कहकर उसने कछुए को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ी पर जा गिरा और गिरते ही उसके प्राण चले गये ।।
इसलिये नीति यही कहती है कि - 'पैर उतने ही पसारो जितनी चादर की लम्बाई हो'। अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा करने पर परिणाम वही निकलेगा जो कछुए को मिला|

Monday, 11 July 2016

दानवीर रहीम

एक बहुत बड़े दानवीर हुए रहीम । उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान

देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे। व्
         
ये बात सभी को अजीब लगती थी कि रहीम कैसे दानवीर है ये दान भी देते है और इन्हें शर्म भी आती है ।

यह बात जब कबीर जी तक जब पहुंची तो उन्होंने रहीम को चार पंक्तिया लिख कर भेजी जिसमे लिखा था -

ऐसी देनी देन जु,
कित सीखे हो सेन !
ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें,
त्यों त्यों नीचे नैन !!

इसका मतलब था के रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो। जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते है वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें, तुम्हारे नैन नीचे क्यों झुक जाते है।

रहीम ने इसके बदले मे जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था क़ि जिसने भी सुना वो रहीम का भक्त हो गया इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नही दिया। रहीम ने जवाब में लिखा

देंन हार कोई और है,
भेजत जो दिन रैन ।
लोग भरम हम पर करें,
तासो नीचे नैन ।।

     
मतलब देने वाला तो कोई और है, वो मालिक है, वो परमात्मा है, वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते है के मै दे रहा हूँ, रहीम दे रहा है ये विचार कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखे नीचे झुक जाती है।

         
सच में मित्रो, ये नासमझी ये मेरेपन का भाव यदि इंसान के अंदर से मिट जाये तो वो जीवन को और बेहतर जी सकता है ।

भगत के वश में है भगवान

"भगत के वश में है भगवान्" --
धन्ना जाट
किसी समय एक गांव में भागवत
कथा का आयोजन किया गया, एक पंडित
जी भागवत कथा सुनाने आए। पूरे सप्ताह
कथा वाचन चला। पूर्णाहुति पर दान
दक्षिणा की सामग्री इक्ट्ठा कर घोडे पर बैठकर
पंडितजी रवाना होने लगे। उसी गांव में एक
सीधा-सदा गरीब किसान
भी रहता था जिसका नाम था धन्ना जाट।
धन्ना जाट ने उनके पांव पकड लिए।
वह बोला - पंडितजी महाराज !
आपने
कहा था कि जो ठाकुरजी की सेवा करता है.
उसका बेडा पार हो जाता है।आप तो जा रहे है।
मेरे पास न तो ठाकुरजी है, न ही मैं
उनकी सेवा पूजा की विधि जानता हूं। इसलिए
आप मुझे ठाकुरजी देकर पधारें।
पंडित जी ने कहा - चौधरी, तुम्हीं ले आना।
धन्ना जाट ने कहा - मैंने तो कभी ठाकुर जी देखे
नहीं, लाऊंगा कैसे ?
पंडित जी को घर जाने की जल्दी थी। उन्होंने
पिण्ड छुडाने को अपना भंग घोटने
का सिलबट्टा उसे दिया और बोले - ये
ठाकुरजी है। इनकी सेवा पूजा करना।
धन्ना जाट ने कहा - महाराज में
सेवा पूजा का तरीका भी नहीं जानता। आप
ही बताएं।
पंडित जी ने कहा - पहले खुद नहाना फिर
ठाकुरजी को नहलाना। इन्हें भोग चढाकर फिर
खाना।
इतना कहकर पंडित जी ने घोडे के एड लगाई व चल
दिए।
धन्ना सीधा एवं सरल आदमी था।
पंडितजी के कहे अनुसार सिलबट्टे को बतौर
ठाकुरजी अपने घर में स्थापित कर दिया।
दूसरे दिन स्वयं स्नान कर सिलबट्टे रूप
ठाकुरजी को नहलाया।
विधवा मां का बेटा था।
खेती भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए भोग मैं अपने
हिस्से का बाजरी का टिक्कड एवं मिर्च
की चटनी रख दी।
ठाकुरजी से धन्ना ने कहा - पहले आप भोग लगाओ
फिर मैं खाऊंगा। जब ठाकुरजी ने भोग
नहीं लगाया तो बोला- पंडित जी तो धनवान
थे। खीर - पूडी एवं मोहन भोग लगाते थे। मैं
तो गरीब जाट का बेटा हूं, इसलिए
मेरी रोटी चटनी का भोग आप कैसे लगाएंगे ? पर
साफ-साफ सुन लो मेरे पास तो यही भोग है।
खीर पूडी मेरे बस की नहीं है। ठाकुरजी ने भोग
नहीं लगाया तो धन्ना भी सारा दिन
भूँखा रहा। इसी तरह वह रोज का एक बाजरे
का ताजा टिक्कड एवं मिर्च की चटनी रख
देता एवं भोग लगाने की अरजी करता।
ठाकुरजी तो पसीज ही नहीं रहे थे। यह क्रम नरंतर
छह दिन तक चलता रहा।
छठे दिन धन्ना बोला - ठाकुरजी,
चटनी रोटी खाते क्यों शर्माते हो ? आप
कहो तो मैं आंखें मूंद लू फिर खा लो। ठाकुरजी ने
फिर भी भोग नहीं लगाया तो नहीं लगाया।
धन्ना भी भूखा प्यासा था। सातवें दिन
धन्ना जट बुद्धि पर उतर आया। फूट-फूट कर रोने
लगा एवं कहने लगा कि सुना था आप दीन-दयालु
हो, पर आप भी गरीब की कहां सुनते हो,
मेरा रखा यह टिककड एवं चटनी आकर नहीं खाते
हो तो मत खाओ। अब मुझे भी नहीं जीना है,
इतना कह उसने सिलबट्टा उठाया और सिर फोडने
को तैयार हुआ, अचानक सिलबट्टे से एक प्रकाश पुंज
प्रकट हुआ एवं धन्ना का हाथ पकड कहा - देख
धन्ना मैं तेरा चटनी टिकडा खा रहा हूं।
ठाकुरजी बाजरे का टिक्कड एवं मिर्च
की चटनी मजे से खा रहे थे।
जब आधा टिक्कड खा लिया तो धन्ना बोला -
क्या ठाकुरजी मेरा पूरा टिक्कड खा जाओगे ? मैं
भी छह दिन से भूखा प्यासा हूं। आधा टिक्कड
तो मेरे लिए भी रखो।
ठाकुरजी ने कहा -
तुम्हारी चटनी रोटी बडी मीठी लग रही है तू
दूसरी खा लेना।
धन्ना ने कहा - प्रभु ! मां मुझे एक
ही रोटी देती है। यदि मैं
दूसरी लूंगा तो मां भूखी रह जाएगी।
प्रभु ने कहा - फिर ज्यादा क्यों नहीं बनाता।
धन्ना ने कहा - खेत छोटा सा है और मैं अकेला।
ठाकुरजी ने कहा - नौकर रख ले।
धन्ना बोला-प्रभु, मेरे पास बैल थोडे ही हैं मैं
तो खुद
जुतता हूं।
ठाकुरजी ने कहा - और खेत जोत ले।
धन्ना ने कहा - प्रभु, आप तो मेरी मजाक उडा रहे
हो। नौकर रखने की हैसियत हो तो दो वक्त
रोटी ही न खा लें हम मां-बेटे।
इस पर ठाकुरजी ने कहा - चिन्ता मत कर मैं
तेरी सहायता करूंगा। कहते है तबसे ठाकुरजी ने
धन्ना का साथी बनकर
उसकी सहायता करनी शुरू की। धन्ना के साथ खेत
में कामकाज कर उसे अच्छी जमीन एवं
बैलों की जोडी दिलवा दी। कुछे अर्से बाद घर में
गाय भी आ गई। मकान भी पक्का बन गया।
सवारी के लिए घोडा आ गया। धन्ना एक
अच्छा खासा जमींदार बन गया। कई साल बाद
पंडितजी पुनः धन्ना के गांव भागवत कथा करने
आए।
धन्ना भी उनके दर्शन को गया, प्रणाम कर
बोला - पंडितजी, आप जो ठाकुरजी देकर गए थे वे
छह दिन तो भूखे प्यासे रहे एवं मुझे
भी भूखा प्यासा रखा। सातवें दिन उन्होंने भूख
के मारे परेशान होकर मुझ गरीब
की रोटी खा ही ली। उनकी इतनी कृपा है
कि खेत में मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम
में मदद करते है। अब तो घर में गाय भी है। सात दिन
का घी-दूध का ‘सीधा‘ यानी बंदी का घी-दूध
मैं ही भेजूंगा। पंडितजी ने सोचा मूर्ख आदमी है।
मैं तो भांग घोटने का सिलबट्टा देकर गया था।
गांव में पूछने पर लोगों ने बताया कि चमत्कार
तो हुआ है। धन्ना अब वह गरीब नहीं रहा।
जमींदार बन गया है। दूसरे दिन पंडितजी ने
धन्ना से कहा-कल कथा सुनने आओ तो अपने साथ
अपने उस साथी को ले कर आना जो तुम्हारे साथ
खेत में काम करता है।
घर आकर धन्ना ने प्रभु से निवेदन
किया कि कथा में चलो तो प्रभु ने कहा - मैं
नहीं चलता तुम जाओ।
धन्ना बोला - तब क्या उन पंडितजी को आपसे
मिलाने घर ले आऊ।
प्रभु ने कहा - बिल्कुल नहीं।
मैं झूठी कथा कहने वालों से नहीं मिलता।
जो मुझसे सच्चा प्रेम करता है और जो अपना काम
मेरी पूजा समझ करता है मैं उसी के साथ रहता हूं।
सत्य ही कहा गया है "भगत के वश में है भगवान्"
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय
जय श्रीकृष्ण
श्रीवल्लभाधीशकीजयः श्रीगौवर्धननाथ
की जय
श्याम सुंदर श्री यमुने महाराणि की जय
हो...!!!

।। कृपा ही कृपा ।।

।।  कृपा ही कृपा ।।
एक कथा है - किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में रखवाया- सन्तों के पीने के लिए!
एक व्यक्ति ने देखा ।वह सोचने लगा -'यह घड़ा कितना भाग्यशाली है कि इसमें गंगाजल भरा गया और अब ये सन्तों के काम आयेगा।'
घड़ा बोल पड़ा-'मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था,किसी काम का नहीं था ।कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है ।फिर एक कुम्हार आया।उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और गधे पर लादकर अपने घर ले गया और वहाँ ले जाकर हमको उसने रौंदा।फिर पानी डालकर गूॅथा और चाकपर चढ़ाकर घुमाया,फिर गला काटा और फिर थापी मार-मारकर बराबर किया ।उसके बाद अबे,आग में जलने को डाल दिया और जब तैयार होकर निकलता तो बाजार में भेज दिया ।वहाँ भी लोग ठोंक-ठोंककर देख रहे थे  कि ठीक है कि नहीं, और कीमत लगायी-10  20  रुपये!
हमको तो इन सबमें भगवान् का अन्याय ही पड़ता था,कृपा थोड़े ही मालुम पड़ती थी!
किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया, तब मुझे मालूम पड़ा कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी भगवान् की कृपा थी, उसका वह गूॅथना भी भगवान् की कृपा थी, आग में जलाना भी भगवान् की कृपा थी और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भगवान् की कृपा ही थी।
अब मालुम पड़ा कि सब भगवान् की कृपा ही कृपा थी!
तो  असल में आप ईश्वर की कृपा पर विश्वास करेंगे, तो आप जहाँ भी देखेंगे वहाँ ही आपको "कृपा" मालूम पड़ेगी!  बस, कृपा-ही-कृपा,कृपा-ही-कृपा!
   
     "   प्रभु मूर्ति कृपा मयी है "
प्रभु के पास कृपा  के सिवाय और कोई पूॅजी है ही नहीं ।

केवल कृपा है!!कृपा है!!कृपा है!!
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Sunday, 20 May 2012

जब कभी जीवन में दुःख आये तो क्या करें?

दु:ख और आघात सभी की जिन्दगी में आते रहते हैं। कोशिश करिए ये अल्पकालीन रहें, जितनी जल्दी हो इन्हें विदा कर दीजिए। इनका टिकना खतरनाक है। क्योंकि ये दोनों स्थितियां जीवन का नकारात्मक पक्ष है। यहीं से तनाव का आरम्भ होता है।

तनाव यदि अल्पकालीन है तो उसमें से सृजन किया जा सकता है। रचनात्मक बदलाव के सारे मौके कम अवधि के तनाव में बने रहते हैं। लेकिन लम्बे समय तक रहने पर यह तनाव उदासी और उदासी आगे जाकर अवसाद यानी डिप्रेशन में बदल जाती है।

कुछ लोग ऐसी स्थिति में ऊपरी तौर पर अपने आपको उत्साही बताते हैं, वे खुश रहने का मुखौटा ओढ़ लेते हैं और कुछ लोग इस कदर डिप्रेशन में डूब जाते हैं कि लोग उन्हें पागल करार कर देते हैं। दार्शनिकों ने कहा है बदकिस्मती में भी गजब की मिठास होती है।

इसलिए दु:ख, निराशा, उदासी के प्रति पहला काम यह किया जाए कि दृष्टिकोण बहुत बड़ा कर लिया जाए और जीवन को प्रसन्न रखने की जितनी भी सम्भावनाएं हैं उन्हें टटोला जाए। मसलन अकारण खुश रहने की आदत डाल लें। हम दु:खी हो जाते हैं इसकी कोई दिक्कत नहीं है पर लम्बे समय दु:खी रह जाएं समस्या इस बात की है। हमने जीवन की तमाम सम्भावनाओं को नकार दिया, इसलिए हम परेशान हैं।

पैदा होने पर मान लेते हैं बस अब जिन्दगी कट जाएगी लेकिन जन्म और जीवन अलग-अलग मामला है। जन्म एक घटना है और उसके साथ जो सम्भावना हमें मिली है उस सम्भावना के सृजन का नाम जीवन है।

इसलिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त नहीं है। इस जीवन के साथ होने वाले संघर्ष को सहर्ष स्वीकार करना पड़ेगा और इसी सहर्ष स्वीकृति में समाधान छुपा है। सत्संग, पूजा-पाठ, गुरु का सान्निध्य इससे बचने और उभरने के उपाय हैं।

क्या करें जब जीवन में बिना गलती बदनामी का दौर आए?

 
जिंदगी में कभी-कभी बिना किसी कारण के अपयश मिलता है। हमारी कोई भूमिका न हो, फिर भी जिंदगी में अपकीर्ति आ जाए तो अच्छे-अच्छे सहनशील भी परेशान हो जाते हैं। कहा गया है -‘नास्त्यकीर्ति समो मृत्यु:’ यानी अकीर्ति के समान मृत्यु नहीं है। ऐसा लगता है जैसे मौत आ गई है। जब अकारण अपयश मिले तो मनुष्य दो काम कर जाता है।


पहली स्थिति तो यह होगी कि कुछ न किया जाए, चुपचाप बैठकर इस अपयश को भोग लें। लेकिन ऐसे में भी स्थितियां बार-बार घूमकर सामने आती हैं और निरंतर प्रताड़ना का एक स्थायी दौर जीवन में आ जाता है। दूसरी स्थिति मनुष्य यह बनाता है कि प्रयास करके इस अपयश को धोया जाए।


लेकिन यह इतना आसान नहीं होता। मानसिक दबाव के कारण मार्ग दिखना ही बंद हो जाता है। राम कथा में हम सुन चुके हैं कि भरत को राम वनवास का अपयश अकारण ही मिला था। लेकिन प्रयास और त्याग वृत्ति के कारण वह अपयश यश में बदल गया था।


कभी जीवन में ऐसा हो जाए तो मनुष्य प्रयास शुरू करता है कि यह अकीर्ति मिट जाए, लेकिन परेशानी होने के कारण उसके प्रयास भी उलटे पड़ने लगते हैं। हमारे ही प्रयास हमें और पीड़ा पहुंचाते हैं। तब एक प्रयोग करिए, चूंकि अपयश के कारण पूरा व्यक्तित्व कंपन करने लगता है।


भले ही लोग न देख सकें, पर हम जानते हैं कि ऐसे हालात में थोड़े समय शरीर को बिल्कुल शांत कर दें। बाहरी कंपन दूर करें तो भीतरी यात्रा प्रारंभ हो सकेगी। लगातार विचारशून्य सांस लें और पूरे व्यक्तित्व को अकंपन की स्थिति में ले आएं। अकंपन की स्थिति आपके प्रयासों को अपयश मिटाने में मदद करेगी।

हार या जीत, जानिए भगवान से किस परिस्थिति में क्या मांगा जाए

हमें अपनी कार्यक्षमता पर भरोसा होना चाहिए और अपने लोगों पर भी विश्वास करना चाहिए। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जीवन में जो भी घट रहा होता है, उसमें हमसे ऊपर एक परम शक्ति की बड़ी भूमिका रहती है। रामकथा में राम अवतार के पांच कारण बताए गए हैं।

उनमें से एक प्रसंग है कि शिवजी पार्वतीजी को कथा सुनाते हैं कि एक बार नारदजी ने विष्णुजी को शाप दिया। यह सुनकर भवानी चौंक उठीं। उन्होंने कहा - एक तो नारद विष्णुजी के भक्त हैं, उस पर ज्ञानी हैं, उन्होंने शाप क्यों दे दिया? यहां एक बहुत सुंदर पंक्ति आती है -

‘कारन कवन शाप मुनि दीन्हा, का अपराध रमापति कीन्हा।’  नारदजी पार्वतीजी के गुरु हैं। इसलिए उन्हें लग रहा है कि यदि कोई अपराध हुआ होगा तो वह विष्णु ने ही किया होगा, नारद नहीं कर सकते। शंकरजी ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया। शंकरजी ने कहा -


‘बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोई,
जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।’


यह शंकरजी का अपना दर्शन है कि संसार में न कोई मूढ़ है, न ज्ञानी। परमात्मा जब डोरी घुमाता है तो आदमी कठपुतली की तरह डोलता है। वह ऊपर वाला ऐसा है कि न उसकी अंगुली दिखती है और न धागे, बस हम कठपुतलियों की तरह दिखते हैं। हमें अपनी क्षमता पर विश्वास होना चाहिए। ऊपर वाला जिंदगी की डोर अपने हाथ में रखता है, इसलिए सफल हों तो उसे धन्यवाद दें और असफल हों तो उससे ताकत मांगें।