यह सारा संसार ब्रह्म के दिनभर में रहता है। दिन समाप्त होते ही संसार नष्ट हो जाता है। जब सहस्त्र युग समाप्त हो जाते हैं तब सभी मनुष्य मिथ्यावादी हो जाते हैं। ब्राह्मण शुद्रों के कर्म करते हैं। शुद्र वैश्यों की भांति धन संग्रह करने लगते हैं या क्षत्रियों के कर्म से अपनी जीविका चलाने लगते हैं। शुद्र गायत्री जप को अपनाते हैं। इस तरह सब लोगों का व्यवहार विपरित हो जाता है। मनुष्य नाटे कद के होने लगते हैं। आयु, बल, वीर पराक्रम सब घटने लगता है। सभी लोगों की बातों में सच का अंश बहुत कम होने लगता है। उस समय स्त्रियां भी नाटे कद वाली और बहुत से बच्चे पैदा करने वाली होती हैं।
गांव-गांव में अन्न बिकने लगता है।
ब्राह्मण वेद बेचने लगते हैं। वेश्यावृति बढऩे लगती है। वृक्षों पर फल-फूल बहुत कम लगते हैं। गृहस्थ अपने ऊपर भार पढऩे पर इधर-उधर से कर की चोरी करने लगते हैं। मदिरा पीते हैं और गुरुपत्नी के साथ व्याभिचार करते हैं। जिनसे शरीर में मांस व रक्त बढ़े उन लौकिक कार्यों को करते हैं। स्त्रियां पति को धोखा देकर नौकरों के साथ व्याभिचार करती हैं। वीर पुरुषों की स्त्रियां भी अपने स्वामी का परित्याग करके दूसरों का आश्रय लेती हैं। इस तरह सहस्त्र युग पूरे होने लगते हैं। इसके बाद सात सूर्यों का बहुत प्रचण्ड तेज बढ़ता है और प्रलय की शुरुआत होती है।
No comments:
Post a Comment