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Sunday 20 December, 2009

विचार मंथन 14

पानी   से भरा कलश सजा हुआ था । उस पर चित्रकारी भी गयी थी । कलश पर एक कटोरी राखी थी, जिससे उसे ढक कर रखा गया था । कटोरी ने कलश से कहा - " भाई कलश ! तुम बड़े उदार हो । तुम सदा दूसरों को देते ही रहते हो। कोई भी खाली बर्तन आए, तुम उसमें अपना जल उँडेल  देते हो । किसी को खाली नहीं जाने देते । " कलश ने कहा - " हाँ, यह तो मेरा कर्त्तव्य है । मैं अपने पास आने वाले हर पात्र को भर देता हूँ । मेरे अंतस का सब कुछ दूसरों के लिए है " कटोरी बोली - " लेकिन आप कभी मुझे नहीं भरते । मैं तो हमेशा आपके सर पर मौजूद रहती हूँ ।" घट बोला - " इसमें मेरा क्या दोष ! दोष तुम्हारे अभिमानी स्वभाव का है । तुम मान -अभिमान कि चाह कि साथ सदा मेरे सर पर चढ़ी रहती हो, जबकि अन्य पात्र मेरे समक्ष आकर झुक जाते हैं । अपनी पात्रता प्रमाणित करते हैं । तुम भी अभिमान छोड़ो, विनम्र बनो, मैं तुम्हे  भी भर दूँगा।"
वस्तुत: पूर्णत्व नम्रता एवं पात्रता के विकास से ही प्राप्त होता है . कोई भी अनुदान बिना सौजन्य के नहीं मिलता । अभिमान ही सबसे बड़ी बाधा है  ।

Wednesday 9 December, 2009

विचार मंथन - 13

आज हर व्यक्ति चाहता है, मेरा पुत्र ही व्यवसाय संभाले, मेरा पुत्र या पुत्री ही मेरे स्थान पर नेता बने । मैं अपने सामने ही उसे तैयार  कर दूँ । ध्रतराष्ट्र की तरह पुत्र मोह्ग्रस्तों की मानो बाढ़ आ गयी है। राजा भरत के सौ पुत्र थे । पर उन्होंने कहा की राज्य में जो सबसे योग्य में जो सबसे योग्य व्यक्ति होगा, वही राजा बनेगा । सभी हमारी  संतानें हैं । सबको अवसर मिलना चाहिए । भूमन्यु नामक एक युवा को सर्वोत्क्रष्ट्र पाया गया । उसे भरत का  उत्तराधिकारी  बनाया  गया । यद्यपि भरत के सौ पुत्र भी प्रतिस्पदर्धा में थे, पर असफल रहे फिर भी किसी के मन में विद्वेष नहीं आया । सभी ने सम्राट भुमंयु का साथ दिया । भुमंयु ने भी अपने पुत्र को राजा नहीं बनाया, प्रजा के ही एक श्रेष्ट व्यक्ति को राजा बनाया । यह परम्परा चलती रही ।
जब दुर्योधन युधिशिठर को पाँच गाँव भी नहीं देने को तैयार था, जब भीष्म पितामह ने पुरखों को आमंत्रित कर कुल का विवरण देने को कहा । तब उन पुरखों ने दुर्योधन युधिशिठर को राजा भरत से लेकर भीष्म तक चली आ रही पूरी परम्परा का विवरण दिया कि कोण कोण  इस सिंहासन पर बैठ चुका है, पर दुर्बुर्द्धि दुर्योधन युद्ध ही चाहता था ।  आज कलिकाल है । दुर्बुद्धि का ही साम्राज्य है ।  इसीलिए यह पुत्रइषणा कि बिडम्बना छाई दिखाई देती है ।