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Wednesday, 9 December 2009

विचार मंथन - 13

आज हर व्यक्ति चाहता है, मेरा पुत्र ही व्यवसाय संभाले, मेरा पुत्र या पुत्री ही मेरे स्थान पर नेता बने । मैं अपने सामने ही उसे तैयार  कर दूँ । ध्रतराष्ट्र की तरह पुत्र मोह्ग्रस्तों की मानो बाढ़ आ गयी है। राजा भरत के सौ पुत्र थे । पर उन्होंने कहा की राज्य में जो सबसे योग्य में जो सबसे योग्य व्यक्ति होगा, वही राजा बनेगा । सभी हमारी  संतानें हैं । सबको अवसर मिलना चाहिए । भूमन्यु नामक एक युवा को सर्वोत्क्रष्ट्र पाया गया । उसे भरत का  उत्तराधिकारी  बनाया  गया । यद्यपि भरत के सौ पुत्र भी प्रतिस्पदर्धा में थे, पर असफल रहे फिर भी किसी के मन में विद्वेष नहीं आया । सभी ने सम्राट भुमंयु का साथ दिया । भुमंयु ने भी अपने पुत्र को राजा नहीं बनाया, प्रजा के ही एक श्रेष्ट व्यक्ति को राजा बनाया । यह परम्परा चलती रही ।
जब दुर्योधन युधिशिठर को पाँच गाँव भी नहीं देने को तैयार था, जब भीष्म पितामह ने पुरखों को आमंत्रित कर कुल का विवरण देने को कहा । तब उन पुरखों ने दुर्योधन युधिशिठर को राजा भरत से लेकर भीष्म तक चली आ रही पूरी परम्परा का विवरण दिया कि कोण कोण  इस सिंहासन पर बैठ चुका है, पर दुर्बुर्द्धि दुर्योधन युद्ध ही चाहता था ।  आज कलिकाल है । दुर्बुद्धि का ही साम्राज्य है ।  इसीलिए यह पुत्रइषणा कि बिडम्बना छाई दिखाई देती है । 

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