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Wednesday, 25 November 2009

विचार मंथन -12

एक बच्चा अधिकांश समय एकांत में बिताता. उसकी कोई इच्छा  नहीं- बाहर निकलने क़ि इच्छा भी नहीं. खेलने भी नहीं जाता था. कहीं जाता तो वापस अपनी राह लौट आता. माँ को चिंता हुई. प्यार से पूछा-" बेटा क्या बात है, आजकल गुम-सुम रहते हो,खेलते नहीं,कुछ काम भी नहीं करते. स्कूल का कितना सारा काम बिना किये रखा है."बेटे ने विन्रम भाव से कहा- "माँ! मै शांतिपूर्वक जीवन जीने क़ि कोशिश कर रहा हूँ .धीरे- धीरे आदत पड़ जाएगी. माँ बोली - नहीं बेटा! चुपचाप पड़े रहने का नाम शांति नहीं है. यह तो परिस्थितियों  से भागना है, आलस्य है, प्रमाद है. कैसी भी स्थिति हो, धेर्य रखकर अनिवार्य दुखों को वीरता पूर्वक झेलता हुआ भी कोई उद्विगन न हो उसे शांत व्यक्ति कहते है.अकर्म्यन्ता छोड़ो. जीवन जीना सीखो."    

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