Tuesday, 3 November 2009
विचार मंथन - 5
पत्थर की एक चट्टान को देखकर शिष्य ने बुद्धसे कुछ पूछना चाहा । वे ध्यानस्थ थे । जैसे ही ध्यान टूटा, वह पूछ बैठा - " भगवन क्या इस चट्टान पर भी कोई शासन कर सकता है या यही सबसे शक्तिशाली है ?" बुद्ध बोले - " चट्टान से कई गुना शक्ति लोहे में होती है । वह इसे तोड़-तोड़कर टुकड़े - टुकड़े कर देता है " शिष्य फिर बोला - फिर लोहे से भी श्रेष्ट कोई वास्तु है ?" बुद्ध बोले - " क्यों नहीं , अग्नि है, जो लोहे को गलाकर पिघला देती है। फिर उसे चाहे जो शक्ल दी जा सकती है। " शिष्य जिज्ञासु था , बोला - " अग्नि की विकराल लपटों के समक्ष किसी का वश नहीं चल पता होगा ?" बुद्ध बोले - " अग्नि की लपटों को जल शीतलता से मंद कर बुझा देता है।" "जल से टकराने की किसी में क्या ताकत होगी ?" पुनः प्रश्न आया । बुद्ध बोले - " वायु का प्रवाह जलधारा की दिशा को ही बदल देता है । संसार का प्रत्येक प्राणी , प्राण - वायु के महत्त्व को जनता है, क्योंकि इसके बिना जीवन का महत्त्व ही क्या है। शिष्य बोला - " जब प्राण ही जीवन है, तो फिर उससे अधिक महत्त्वपूर्ण तो और कुछ नहीं होना चाहिए ?" अब भगवान हँसे और बोले - " अरे! आदमी की संकल्पशक्ति वायु को - प्राण को भी वश में कर लेती है। मानव की यह सबसे बड़ी शक्ति - संपदा है, विभूति है ।" शिष्य का पूरा समाधान हो गया ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment