Monday, 23 November 2009
विचार मंथन - 10
ईसा ने कहा - "गरीबो- अपहिजो के लिए तुमसे जो बन पड़े, दान करो; भले ही वह थोडा हो ". लोग धन देने आने लगे. एक बार जो आया, फिर दोबारा न आया, पर एक विधवा स्त्री प्रतिदिन आती थी और एक पैसा कम से कम डाल देती; कभी कभी ज्यादा भी ड़ाल देती. एक माह के बाद ईसा के पास सभी भक्त आये . जानना चाहते थे कि किसका दान श्रेष्ठ रहा. ईसा ने उस महिला कि ओर संकेत किया कि यह सबसे महान सेवक है, जो स्वयं अभावग्रस्त होते हुए भी निरंतर कुछ न कुछ देती रही. तंगी में भी जिसके मन में देने का भाव है, वह सबसे महान है. वही सबसे बड़ा दानी है. परमार्थ के लिए किया गया सत्कर्म ही दान है . भले ही अंशदान द्वारा थोड़ी सी राशि एकत्र हुई हो, पर वह उस धन कि थैली से बड़ी है,जिसके पीछे मद-मान छिपा है.
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