copyscape

Protected by Copyscape Web Plagiarism Finder

Thursday, 5 November 2009

विचार मंथन - 6

एक साधू महाराज घर के द्वार पर बेठे तीन भाईयों को उपदेश सुना रहे थे- "बच्चो संसार में संतोष में ही सच्चा सुख है। कछुए की तरह अपने हाथ -पाँव सब ओरसे समेटकर जो अपनी आत्मा में लीन हो जाता है ,वह परमानन्द पाता है। ऐसा व्यक्ति श्रम करे, न करे;उसे संसार में कोई दुःख नही रहता।" घर के भीतर माँ बुहारी लगा रही थी। उसके कानो में भी साधू की वाणी पड़ी। वह चोक्नी हो गई। बाहर आई। तीनो लड़को को लाइन में खड़ा किया। एक को घडा पकडाया ओर पानी भरकर लाने को कहा दुसरे से कहा की ले झाडू ओर घर -बाहर-आँगन सब तरफ़ सफाई कर और तीसरे को बगीचे में गोडाई के लिए भेजा। फिर कहा-"सब काम करके मेरे पास आओ,और भी काम है,फिर तुम्हे पड़ने भी बेठना है।"फिर वह साधू की ओर बड़ी ओर बोली-"भगवन !मेरे बच्चो को यह विष -वारुनी पिलाने के बजाये आप ख़ुद उद्योग करते तो अच्छा रहता। आपके उपदेश से निरुधोगी बने ढेरो व्यक्ति मैंने क़र्ज़ में दबे देखे है। आप मेरे बच्चो को मुझ पर छोड़ दीजिये।" गाँव वालो ने कहा - "महाराज! आपका उपदेश झूठा, इस माँ का आदेश सच्चा - श्रम ही प्रत्यक्ष देवता है। "

No comments: