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Saturday 7 November, 2009

विचार मंथन - 7

पक्षियों को देखिये ! पशुओं को देखिये ! वे प्रात: से लेकर सायंकाल तक उतनी खुराक बीनते चलते हैं, जितनी वे पचा सकते हैं। पृथ्वी पर बिखरे चारे - दाने की कमी नही। सबेरे से शाम तक घाटा नही पड़ता पर लेते उतना ही हैं, जितना मुँह माँगता और पेट संभालता है। यही प्रसन्न रहने की नीति है।
जब उन्हें स्नान का मन होता है,
तब इच्छित समय तक स्नान करते हैं। उतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं, जिसमें उनका शरीर समा सके। कोई इतना बड़ा नहीं बनता, जिसमें समूचे समुदाय को बिठाया - सुलाया जाय

पेड़ पर देखिये, हर पक्षी ने अपना छोटा घोंसला बनाया है। जानवर अपने रहने लायक छाया का प्रबंध करते है। वे जानते है की स्रष्टा के साम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं । जब जिसकी जितनी जरुरत है। आसानी से मिल जाता है। आपस में लड़ने का झंझट क्यों मोल लिया जाय! हम इतना ही लें, जितनी तत्कालीन आवश्यकता हो।
ऐसाकरने से हम सुख - शांतिपूर्वक रहेंगे भी और उन्हें रहने देंगे , जो उसके हकदार हैं।

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