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Saturday, 31 October 2009

विचार मंथन - 4

एक किसान बड़े काहिल स्वभाव का था । दिन में पॉँच - छ: चक्कर घर के लगा जाता। कभी फसल में पानी ज्यादा चला जाता, कभी ढोर खेत चर जाते । घर पर भी एक - दो घंटे सोकर फिर जाता। घर में दरिद्रता थे। पति - पत्नी में खटपट बनी रहती । किसान ने अपने मित्र से खटपट के बारे में कहा, मित्र ने उसके कान में कुछ देर तक एक सलाह दी। दूसरे दिन किसान बड़े सवेरे खेतों पर चला गया । दोपहर तक घोर परिश्रम करता रहा । आज उसे पसीने से परेशानी न थी। सूर्यदेव सिर पर आ गए, पर वह काम पर लगा रहा । सारी मेंडे ठीक कीं बाड़ भी ठीक की। तभी देखा कि उसकी धरमपत्नी हंसती हुई ताजा भोजन लिए आ पहुँची है । पेड़ कि छायामें बैठकर उसने आग्रहपूर्वक भोजन कराया । किसान ने पूछा - " आज क्या बात है पिर्ये ! इससे पहले तुमने मेरा इतना ध्यान नहीं रखा था । " पत्नी बोली - " पतिदेव ! आज अभी आपको भोजन कि जितनी आवश्यकता थी, उतनी पहले कभी नहीं रहती थी। आप एसेही श्रम करते रहें, मैं रोज आऊंगी । शाम को घर पर साथ खायगें । "
घर - खलिहान में समृध्दी आ गयी । आपस में प्रेम बढ़ गया।

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