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Wednesday 28 October, 2009

विचार मंथन - २

एक बरगद के पेड़ नीचे बैठे दस व्यक्ति वार्तालाप कर रहे थे । बूढा बरगद सुन रहा था । वे सभी दुनिया के झंझटों से परेशान होकर भाग आए थे और साधू होने की सोच रहे थे । एक ने कहा कि जब तप करेंगे और ईश्वर प्रसन्न होगा तो क्या माँगेगे ? दूसरे ने कहा - " अन्न बिना जिन्दा रहना मुश्किल हैं, वहीं माँगेंगे ।" तीसरे ने कहा - " बल माँगेंगे ।" चौथे ने कहा - " बुद्धी माँगेंगे । " पाँचवा बोला - " आत्मशांति माँगेंगे ।" तब पहला बोला - अरे मूर्खो हमे स्वर्ग मांगना चाहिए । वहां सभी चीजे एक साथ मिल जाएँगी । विशाल बरगद ठहाका लगाकर हस पड़ा और बोला-"मूर्खो"!सुनो, मेरी बात मानो । तुमसे न तप होगा ओर न कोई वरदान मिलेगा । इतना ही मनोबल होता संसार से भागते क्यों ? संसार को ही अपना तपोवन बना लो । सब से प्रेम करो । फिर देखो, तुम्हे सारी सिद्धियाँ मिल जायेंगी । सब लोट आए और सचमुचएसा ही हुआ कि सेवा में, प्राणिमात्र कि आराधना में लगते ही उन्हें सब सिद्धियाँ स्वतः मिलने लगी। यही अध्यातम का राजमार्ग है।

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