एक बार पाँच असमर्थ, अपंग लोग एकत्र हुए और कहने लगे की यदि भगवान ने हमें समर्थ बनाया होता तो हम परमार्थ का कार्य करते , पर क्या करें ! अँधा बोला - मेरी आँखें होती तो जहाँ कहीं बिगाड़ दिखाई देता, उसे सुधारने में लग जाता । लंगड़े ने कहा - मेरे पैर होते तो मैं दौड़ - दौड़कर भलाई के काम करता । निर्बल ने कहा - मेरे पास ताकत होती तो अत्याचारीयों को मज़ा चखा देता । निर्धन ने कहा - मेरे पास में धन होता तो मैं दीन -दुखियों के लिए लुटा देता। मुर्ख ने कहा -मैं अगर विद्वान् होता तो संसार में ज्ञान की गंगा बहा देता। चारो और विद्या ही विद्या दिखाई देती। वरुण देवता ने उनकी बातें सुनी। सचाई परखने के लिए उन्होंने सात दिन के लिए सशर्त उन्हें आर्शीवाद दे दिया। जैसे ही रूप बदला, पांचो के विचार भी बदल गए। अंधे ने कामुकता की वृति अपना ली।लंगडा घूमने निकल पड़ा। धनि ठाट-बाट एकत्र करने में लग गया। बलवान दुसरो को सताने लगा। विद्वान् ने सबको उल्लू बनाना चालू कर दिया। वरुण देव लोटे , देखा कि वे तो स्वार्थ सिद्दी में लगे थे। खिन देवता ने वरदान वापिस ले लिए। सब पहले जैसे हो गए। अब उन्हें प्रतिघायें याद आई। समय निकल चुका था। हम सब भी जीवन में मिली विभूतियों को याद नही रखते, उनका सुनियोजन नही करते। करे,तो यह कलेश भरी जिंदगी क्यों जियें ? जियें तो हर पल आनंद के साथ जियें ।
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