अनुभवों के बीच अनुभवकर्ता और द्रष्टा को खोजो। प्रत्येक अनुभव हमारे भीतेर एक छाप छोड़ता है। जिससे हमारी बुद्धि द्धक जाती है। इसी क्षण जागो। अपने मस्तिष्क से सभी पुराने अनुभवों को निकाल दो। उस पवित्र आत्मा को देखो जो मैं हूँ, जो तुम हो।
अनुभव और अनुभवकर्ता का भेद
क्या तुम सचमुच यहाँ हो? क्या तुम सुन रहे हो? अब आँखें बंद कर के देखो। कौन सुन रहा है, प्रश्न कौन कर रहा है? कौन बैठा है और कौन क्या चाहता है। कौन उलझन में है? यही अनुभवकर्ता है। इन दो शब्दों में बारीक सा भेद है,जिसने समझ लिया उसने अनुभव कर लिया।
-श्री श्री रविशंकर
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