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Saturday, 30 May 2009

सदाचार का महत्व

समझने में भूल करना भ्रम है और भ्रम को जान लेना ज्ञान है। संसार में हमारे अनुभव हमारी समझ पर निर्भर है। क्योंकि हमारी समझ में त्रुटियाँ है। इसलिए संसार माया है, भ्रम है। सभी अबुभाव हमारे अपने दृष्टिकोण से होते है। अनुभवकर्ता(द्रष्टा) ही एकमात्र सत्य है।
अनुभवों के बीच अनुभवकर्ता और द्रष्टा को खोजो। प्रत्येक अनुभव हमारे भीतेर एक छाप छोड़ता है। जिससे हमारी बुद्धि द्धक जाती है। इसी क्षण जागो। अपने मस्तिष्क से सभी पुराने अनुभवों को निकाल दो। उस पवित्र आत्मा को देखो जो मैं हूँ, जो तुम हो।
अनुभव और अनुभवकर्ता का भेद
क्या तुम सचमुच यहाँ हो? क्या तुम सुन रहे हो? अब आँखें बंद कर के देखो। कौन सुन रहा है, प्रश्न कौन कर रहा है? कौन बैठा है और कौन क्या चाहता है। कौन उलझन में है? यही अनुभवकर्ता है। इन दो शब्दों में बारीक सा भेद है,जिसने समझ लिया उसने अनुभव कर लिया।
-श्री श्री रविशंकर

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