गलती को सुधारने की चाह कर्तापन लाती है और कर्तापन गलतियाँ का आधार है। प्राय: जो गलतियाँ को सुधारने का प्रयत्न करते हैं, वे और अधिक गलतियों में फँस जाते हैं । पर जो गलतियों को पहचान लेते हैं, वे उनसे मुक्त हो जाते हैं।
अकसर जब हम स्वीकार करते हैं कि हमने भूल की है, हम उसकी जिम्मेवारी लिए बिना सफ़ाई देने की चेष्टा करते हैं । और कभी-कभी हम स्वीकार करते हैं कि हमने भूल की है, पर उसके लिए दोषी महसूस करते हैं। जब हमें विवेक कचोटता है या जब दु:ख होता है, तब गलतियां मिट जाती हैं ।
किसी भी कार्य, परिसिथती या व्यक्ति में त्रुटियाँ हो सकती हैं - त्रुटि को फूल की भांति समझो। जिस प्रकार एक फूल को कुछ ले; बाद मुरझा जन है, वैसेही त्रुटि को भी विलुप्त हो जाना है ।
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