--- मंत्र-शक्ति ---
एक बार लंका नरेश रावण,राजा हरिश्चंद्र की तपस्चर्या से प्रभावित हो कर उनके दर्शन करने आया | राज महल के द्वार पर पहुँच कर रावण ने द्वारपाल को अपने आने का प्रयोजन बताया और कहा कि - " मैंने राजा हरिश्चंद्र कि तपश्या और मंत्र साधना के विषय में काफी प्रशंशा सुनी है| मैं उनसे कुछ सीखने कि कामना लेकर आया हूँ " |
द्वारपाल ने रावण को उत्तर दिया कि - " हे भद्र पुरुष आप निस्चय ही हमारे राजा से मिल सकेंगे,किन्तु अभी आपको प्रतीक्षा करनी होगी क्योंकि राजन अभी अपने साधना कक्ष में साधना,उपाशना आदि कर रहे हैं " | कुछ समय के बाद द्वारपाल रावण को ले कर राजा हरिश्चंद्र के पास गया | रावण ने झुक कर प्रणाम किया और राजा से अपने मन कि बात कही कि वह उनसे साधनात्मक ज्ञान - लाभ हेतु आया है |
वार्तालाप चल ही रहा था कि एकाएक राजा हरिस्चन्द्र का हाथ तेजी से एक ओर घूमा | पास रखे एक पात्र से उन्होंने अक्षत के कुछ दाने उठाये और होठो से कुछ अस्पस्ट सा बुदबुदाते हुए बड़ी तीव्रता से एक दिशा में फेेंक दिया | रावण एकदम हतप्रभ सा रह गया ,उसने पुछा - " राजन यह आपको क्या हो गया था " |
राजा हरिस्चन्द्र बोले -- " यहाँ से १०० मील दूर पूर्व दिशा में एक हिंसक व्याघ्र ने एक गाय पर हमला कर दिया था और अब वह गाय सुरक्षित है " | रावण को बड़ा अचरज हुआ और वह बिना समय गवाएं इस बात को स्वयं जा कर देख लेना चाहता था | चलते - चलते जब रावण उस स्थल तक पहुंचा तो देखा कि रक्त-रंजित एक व्याघ्र भूमि पर पड़ा है,पास ही में वो अक्षत के दाने भी पड़े थे | व्याघ्र को वे अक्षत के दाने तीर कि भांति लगे थे जिससे वह घायल हुआ था | राजा हरिस्चन्द्र कि मन्त्र - शक्ति का प्रमाण रावण के सामने था |
शेर के बच्चे को शिकार करना नहीं सिखाया जाता,मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाया जाता,गुरु बीज-मन्त्र के उपाशकों,इसे समझो और बूझो |आज भी मंत्रो में वही शक्ति है,वही तेजस्विता है,जो राजा हरिश्चंद्र के समय थी | आवश्यकता है तो,मनःस्थिति को एकाग्र करने कि,पूर्ण दृढ़ता के साथ मन्त्रों का ह्रदय से उच्चारण करने क़ी |
---- जय श्री राम ----