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Wednesday 27 July, 2016

'पैर उतने ही पसारो जितनी चादर की लम्बाई हो'।

एक कछुआ यह सोचकर बड़ा दुखी रहता था कि पक्षीगण बड़ी आसानी से आकाश में उड़ा करते हैं  , परन्तु मैं नही उड़ पाता । वह मन ही मन यह सोचविचार कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाश में पहुँचा दे तो फिर मैं भी पक्षियो की तरह ही उड़ते हुये विचरण किया करूँ ।
एक दिन उसने एक गरूड़ पक्षी के पास जाकर कहा - भाई ! यदि तुम दया करके मुझे एक बार आकाश में पहुँचा दो तो मैं समुद्रतल से सारे रत्न निकालकर तुम्हे दे दुँगा । मुझे आकाश मे उड़ते हुऐ विचरण करने की बड़ी ईच्छा हो रही है ।
कछुए की प्रार्थना तथा आकांक्षा सुनकर गरुड़ बोला - ' सुनो भाई ! तुम जो चाहते हो उसका पूरा हो पाना असम्भव है क्योंकि अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा कभी पूरी नही हो पाती ।'
परन्तु कछुआ अपनी जिद पे अड़ा रहा , और बोला ! बस तुम मुझे एक बार उपर पहुँचा दो, मैं उड़ सकता हुँ, और उड़ुँगा  और यदि नही उड़ सका तो गिरकर मर जाऊंगा, इसके लिये तुम्हे चिंता करने की जरुरत नही ।
तब गरुड़ ने थोड़ा सा हँसकर कछुए को उठा लिया और काफी उँचाई पर पहुँचा दिय । उसने कहा - 'अब तुम उड़ना आरम्भ करो ' इतना कहकर उसने कछुए को छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ी पर जा गिरा और गिरते ही उसके प्राण चले गये ।।
इसलिये नीति यही कहती है कि - 'पैर उतने ही पसारो जितनी चादर की लम्बाई हो'। अपनी क्षमता से ज्यादा आकांक्षा करने पर परिणाम वही निकलेगा जो कछुए को मिला|

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