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Monday, 23 May 2011

तब यह दुनिया सबसे मुश्किल काम लगता है...

तब यह दुनिया सबसे मुश्किल काम लगता है...

हमारे देश में बात-बात पर धर्म की दुहाई दी जाती है। धर्म पर बात करना आसान है, धर्म को समझना सरल नहीं है, धर्म को समझ कर पचा लेना उससे भी अधिक मुश्किल है, लेकिन सबसे कठिन है धर्म में जी लेना।
 धर्म में जी लेना जितना कठिन है, जीने के बाद उतना ही आसान भी है। बिल्कुल इसी तरह है कि जब कोई पहली बार साइकिल सीखने जाता है तब उसे ऐसा लगता है कि दुनिया में इससे असंभव काम कोई नहीं, क्योंकि जैसे ही वह दोपहिया वाहन पर बैठता है, वह लडख़ड़ाता है, गिर जाता है।

सीखने वाला आदमी जब दूसरे को साइकिल मस्ती में चलाते हुए देखता है तो उसे बड़ा अजीब लगता है। यह कैसे मुमकिन है मैं तो पूरे ध्यान से चला रहा हूं फिर भी गिर जाता हूं और वह बड़ी मस्ती में चला रहा है। जब एक बार आदमी साइकिल चलाना सीख जाता है तो वह भी मस्ती से साइकिल चला लेता है।

धर्म का मामला कुछ इसी तरह का है, जब तक उसे जिया न जाए यह बहुत खतरनाक, परेशानी में डालने वाला, लडख़ड़ाकर गिर जाने वाला लगता है। लेकिन एक बार यदि धर्म को हम जी लें तो फिर हम उस मस्त साइकिल सवार की तरह हैं जो अपनी मर्जी से लहराते हुए चलाता है, अपनी मर्जी से रोक लेता है, अपनी मर्जी से उतर जाता है और बिना लडख़ड़ाहट के चला लेता है। जीवन में धर्म बेश कीमती हीरे की तरह है। जिसे हीरे का पता नहीं वो जिंदगीभर कंकर-पत्थर ही बीनेगा।

पहले तो हमारी तैयारी यह हो कि हम जौहरी की तरह ऐसी नजर बना लें कि धर्म को हीरे की तरह तराश लें। वरना, हम हीरे को भी कंकर-पत्थर बनाकर छोड़ेंगे। धर्म को तराशने की एक क्रिया का नाम है जरा मुस्कराइए...।

1 comment:

Satish Saxena said...

बढ़िया लिखते हैं ... :-)