इस तरह भूला सकते हैं दर्दभरी यादों को....
पीड़ा दायक स्मृतियों को भुला देना ही बुद्धिमानी है और अच्छी बातों को याद रखना समझदारी है, लेकिन यदि अच्छी बातें सही समय पर आचरण में न उतारी गईं तो ये भी बोझ बन जाएंगी। कुछ घटनाएं जीवन में ऐसी होती रहती हैं कि जिन्हें यदि नहीं भुलाया गया तो वे मानसिक उधेड़बुन में हमको पटक देती हैं।
एक घटना फिर कई विपरीत घटनाओं को जन्म देने वाली बन जाती है। इसलिए अप्रिय प्रसंगों को तत्काल विस्मृत करें। इनको सतत् याद रखने का नाम है चिंता। चिंता करने वाला आदमी कुछ समय बाद अवसाद में जरूर डूबेगा। प्रिय और अच्छी स्थितियां सद्पयोग के लिए होती हैं। अपने शुभ कर्मों को एक जगह अपनी स्मृति में स्टॉक की तरह रखना चाहिए और उनका उपयोग भविष्य में करते रहना चाहिए।
चार तरीके से अपने शुभ कर्मों को दूसरों के प्रति उपयोग करें। पहला, अपने से छोटी उम्र के लोगों से अपने शुभ कर्म जोड़ें इससे स्नेह बढ़ेगा। अपने
जैसे ही हमारे शुभकर्म चौथे चरण में परमात्मा के प्रति जुड़ते हैं, बस फिर इसे भक्ति कहा जाएगा। इसलिए अशुभ, अप्रिय और अनुचित घटे हुए को विस्मृत करें, भूल जाएं तथा शुभ को याद रखते हुए उनका इन चार चरणों में सद्पयोग करें। इसका सीधा असर आपके स्वास्थ्य पर पड़ेगा। क्या भूलना है और क्या याद रखना यह अपनेआप में एक इलाज है। आप चिंतामुक्त हुए और आपके कर्मों ने सफलता की यात्रा आरंभ कर दी। ऐसा मानकर चलिए और आरंभ करिए, जरा मुस्कराइए...
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