जीवन में कुछ चीजें कभी खत्म नहीं होतीं, बल्कि नई-नई शक्लों में सामने आती रहती हैं। इनमें से एक है - समस्या। इसके छोटे-बड़े दो रूप होते हैं। दरअसल यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो व्यक्ति की समझ, सहनशीलता के अनुसार समस्या छोटी या बड़ी होती है।
किसी एक व्यक्ति के लिए जो समस्या जीवनभर का बोझ बने, वही समस्या दूसरे के लिए चुटकी में निपटाए जाने वाली हो सकती है। समस्याओं को शक्ल बदलने में भी महारत हासिल होती है। इसलिए उपाय, निदान भी वैसे ही जुटाने चा
हिए। प्यास कई लोगों की हो तो केवल एक नल से आ रहा जल पर्याप्त नहीं होगा, फिर निदान जलाशय ही रहेगा।
इसलिए समस्या निपटाने में सूझबूझ का बड़ा महत्व है। समस्या को अपने मनुष्य होने के स्तर पर निपटाएंगे तो तनाव तो होगा ही, परिश्रम भी ज्यादा लगेगा। इसमें किसी सहारे और मददगार की जरूरत को समझें। इसलिए ईश्वर को अपने साथ रखें। परमात्मा ने अपने स्वरूप में भी विभिन्नता रखी है।
वह अपने भक्तों की परीक्षा इसी रूप और रुचि से लेता है। इसीलिए समस्याओं के भी अनेक रूप होते हंै। हर समस्या अपने साथ एक स्वाद लेकर आती है। हम उससे निपटने में थकते नहीं हैं, बल्कि अपने परमात्मा से यह कहने की इच्छा होती है - तू सितम पर सितम किए जा, हम तैयार हैं।
वह अपने भक्तों की परीक्षा इसी रूप और रुचि से लेता है। इसीलिए समस्याओं के भी अनेक रूप होते हंै। हर समस्या अपने साथ एक स्वाद लेकर आती है। हम उससे निपटने में थकते नहीं हैं, बल्कि अपने परमात्मा से यह कहने की इच्छा होती है - तू सितम पर सितम किए जा, हम तैयार हैं।
हम रहम पर रहम मांगेंगे, तू भी तैयार रह। समस्या का मूल क्या है, इसमें समझ काम आती है। समस्या का रूप क्या है, इसके लिए निगाह काम आती है। समस्या दोबारा न आए, इसके लिए दूरदर्शिता होनी चहिए और किसका सहयोग लिया जाए, इस हेतु संपर्क होना चाहिए।
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