परिवारों में आपसी तनाव का एक बड़ा
कारण यह है कि सदस्य एक-दूसरे को उनके अधिकार का समय नहीं दे पा रहे हैं।
पति-पत्नी के बीच मतभेद का मनोवैनिक कारण भी यही है कि ये दोनों जब एकांत
में साथ में होते हैं, तब भी साथ नहीं होते। दोनों के बीच तन होता है, धन
होता है और जन भी होते हैं यानी दूसरे लोग भी, लेकिन मन नहीं होता।
दोनों साथ होते हैं, लेकिन दोनों के ही मन कहीं दूर भाग रहे होते हैं। मन वहीं उपस्थित रहे तो दोनों के बीच का प्रेम दिव्य रूप ले लेगा। सुंदरकांड में श्रीराम का विरह-संदेश सीताजी को देते समय हनुमानजी ने रामजी की ओर से जो पंक्तियां कही थीं, उसमें श्रीरामजी ने तीन बार मन शब्द का प्रयोग किया है।
इसे इस बात से समझ लें कि जब भी हम अपने निकट के व्यक्तियों के साथ परिवार में हों तो मन को साथ ही रखें। मन का भटकाव रिश्तों के तनाव का एक बड़ा कारण है। रामजी ने सीताजी के लिए संदेश भेजा था -
कहेहु तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनि मोरा।।
अर्थात मन का दुख कह देने से भी बहुत कुछ घट जाता है। पर कहूं किससे? यह दुख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का रहस्य मेरा मन ही जानता है। और वह मन सदा तेरे ही पास रहता है।
दोनों साथ होते हैं, लेकिन दोनों के ही मन कहीं दूर भाग रहे होते हैं। मन वहीं उपस्थित रहे तो दोनों के बीच का प्रेम दिव्य रूप ले लेगा। सुंदरकांड में श्रीराम का विरह-संदेश सीताजी को देते समय हनुमानजी ने रामजी की ओर से जो पंक्तियां कही थीं, उसमें श्रीरामजी ने तीन बार मन शब्द का प्रयोग किया है।
इसे इस बात से समझ लें कि जब भी हम अपने निकट के व्यक्तियों के साथ परिवार में हों तो मन को साथ ही रखें। मन का भटकाव रिश्तों के तनाव का एक बड़ा कारण है। रामजी ने सीताजी के लिए संदेश भेजा था -
कहेहु तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।।
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनि मोरा।।
अर्थात मन का दुख कह देने से भी बहुत कुछ घट जाता है। पर कहूं किससे? यह दुख कोई जानता नहीं। हे प्रिये! मेरे और तेरे प्रेम का रहस्य मेरा मन ही जानता है। और वह मन सदा तेरे ही पास रहता है।
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