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Sunday 20 May, 2012

विचार मंथन - 15

एक महात्मा जी जंगल में अपने शिष्यों के साथ जंगल में रहते थे । शिष्यों को एवं नगर से आते रहने वाले जिज्ञासुओं को योगाभ्यास भी सिखाते एवं सत्संग भी करते । उनका एक शिष्य बड़ी चंचल बुद्धि का था । बार - बार जिद करता कि आप कहाँ जंगल में पड़ें हैं,  चलिए, एक बार नगर की सैर करके आते हैं। इतने सारे शिष्य जो आपके हैं । योगीराज ने कहा - " मुझे तो अपनी साधना से अवकाश नहीं है । तू चला जा  । " चेला अकेला ही नगर चला गया । नगर - बाज़ार की शोभा देखे । मन अति प्रसन्न था । इतने में एक भवन की छत पर निगाह पड़ी । देखा की एक अतिशय सुन्दर स्त्री छत पर खड़ी बाल सुखा रही है । बस, वह द्रश्य देखकर ही वह कामदेव के बाण से आहत की तरह छटपटाने लगा ।
वह आश्रम लौटा । गुरु महाराज चेले जी का चेहरा देखकर जान गए थे की बच्चा माया का शिकार हो गया है ।  पूछा । चेले ने जवाब दिया - " महाराज ! छाती में असहनीय दर्द हो रहा है । " महात्मा बोले - "क्या नजर का कांटा ह्रदय में गड़ गया ? गुरु से झूठ न बोल । " लज्जित चेले ने सारा वृत्तान्त सुना दिया । चेले से गुरु महाराज ने उस स्त्री का पता लिया । पता लगाया कि वह नगर के एक सेठ की पत्नी थी । पत्र में  लिखा  की हम पर विश्वाश कर आप अपनी पत्नी लो लेकर इस आश्रम में एक रात के लिए आ जाएँ । महाराज जी की प्रतिष्ठा थे । सबका उन पर विश्वाश था । सेठ जी को अलग बैठाकर महात्मा स्त्री को लेकर शिष्य के पास गए । कहा _ " ले भाई! यह स्त्री तेरे पास है ।  रात भर रहेगी । तू इतना ध्यान रखना कि प्रात: काल सूर्य निकलते ही तेरा देहांत हो जायेगा । इतने घंटे तेरे हैं । तू मौज कर ।" उस स्त्री को पहले ही समझा दिया था उन्होंने कि घबराना मत. तुम्हारे धरम पर कोई आंच नहीं आएगी  ।इधर चेला रात भर काँपता रहा ।सारी काम वासना काफूर हो गए । रात बीत गयी । गुरु जी आये । पूछा तेरी इच्छा पूरी हुई?  

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