पहली स्थिति तो यह होगी कि कुछ न किया जाए, चुपचाप बैठकर इस अपयश को भोग लें। लेकिन ऐसे में भी स्थितियां बार-बार घूमकर सामने आती हैं और निरंतर प्रताड़ना का एक स्थायी दौर जीवन में आ जाता है। दूसरी स्थिति मनुष्य यह बनाता है कि प्रयास करके इस अपयश को धोया जाए।
लेकिन यह इतना आसान नहीं होता। मानसिक दबाव के कारण मार्ग दिखना ही बंद हो जाता है। राम कथा में हम सुन चुके हैं कि भरत को राम वनवास का अपयश अकारण ही मिला था। लेकिन प्रयास और त्याग वृत्ति के कारण वह अपयश यश में बदल गया था।
कभी जीवन में ऐसा हो जाए तो मनुष्य प्रयास शुरू करता है कि यह अकीर्ति मिट जाए, लेकिन परेशानी होने के कारण उसके प्रयास भी उलटे पड़ने लगते हैं। हमारे ही प्रयास हमें और पीड़ा पहुंचाते हैं। तब एक प्रयोग करिए, चूंकि अपयश के कारण पूरा व्यक्तित्व कंपन करने लगता है।
भले ही लोग न देख सकें, पर हम जानते हैं कि ऐसे हालात में थोड़े समय शरीर को बिल्कुल शांत कर दें। बाहरी कंपन दूर करें तो भीतरी यात्रा प्रारंभ हो सकेगी। लगातार विचारशून्य सांस लें और पूरे व्यक्तित्व को अकंपन की स्थिति में ले आएं। अकंपन की स्थिति आपके प्रयासों को अपयश मिटाने में मदद करेगी।
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